सात-आठ साल से इस मसले पर चल रहा था रिसर्च, मशीन बनकर तैयार
वाराणसी। BHU Hospital में अब खर्राटे वाली मशीन बना दी गई है। इसकी खासियत यह है कि रात में जबड़े के पास इसे लगाकर सो जाए। नाक बजना बंद हो जाएगा। साथ छह महीने तक इस मशीन को लगातार सो लिए तो फिर आजीवन खर्राटे की समस्या नहीं होगी। आईएमएस-बीएचयू के ट्रॉमा सेंटर स्थित फैकल्टी आफ डेंटल मेडिसिन और डिपार्टमेंट आफ चेस्ट एंड टीबी डिजीज में बीते सात-आठ साल से इस मसले पर रिसर्च चल रहा था और अब मशीन को तैयार किया गया है। डिवाइस तैयार करने वाली रिसर्च टीम का हिस्सा रहे डेंटल फैकल्टी के प्रोफेसर टीपी चतुर्वेदी ने कहा कि यह संकाय में चेस्ट विभाग के डॉक्टरों के साथ मिलकर बनाया गया है। इसे ‘अप्लायंस’ भी कहा जाता है। अभी तक खर्राटे का इलाज कराने में आपको डेढ़ से दो लाख रुपए की मोटी रकम चुकानी पड़ती है। मगर, इस मशीन को लगवाने का खर्च महज 20 हजार रुपये आएगा।
प्रोफेसर ने दी विस्तृत जानकारी
विस्तृत जानकारी देते हुए प्रो. चतुवेर्दी ने कहा कि श्वांस लेने में जब बाधा होती है तो नाक बजने लगते हैं। जब आप इस मशीन को जबड़े में फिट कर देंगे तो श्वांस नली में आॅक्सीजन की सप्लाई में कोई बाधा नहीं आएगी। उन्होंने कहा कि हमने पेटेंट के लिए अप्लाई किया है। इसलिए, अभी इसके मैकेनिज्म या तकनीक के बारे में कोई जानकारी नहीं शेयर कर सकते हैं। हम अगले 6 महीने में मरीजों का इलाज शुरू कर देंगे। प्रो. चतुवेर्दी ने बताया कि अस्पताल में कई मरीजों पर इसका सफल परीक्षण किया जा चुका है।
टीबी एंड चेस्ट विभाग के प्रोफेसर ने भी की सहायता
कहा कि भारत में 35 साल से ज्यादा उम्र वाले करीब एक-तिहाई लोग नाक बजने की समस्या से ग्रसित हैं। इनमें से 80% लोग इलाज ही नहीं कराते। वहीं बाकी के मरीज चेस्ट और श्वांस रोग विभागों में जाकर अपना इलाज कराते हैं। इसमें काफी पैसे देने पड़ जाते हैं। रात में सोते के दौरान हमारे जबड़े के मसल्स ढीले हो जाते हैं। इससे जबड़ा थोड़ी पीछे की ओर खिसकता है। इस दौरान श्वांस नली थोड़ी दब जाती है। आक्सीजन जाने का प्रवाह कम हो जाता है। इसके लिए हमें ज्यादा जोर लगाना होता है। इसलिए नाक से ध्वनि पैदा होने लगती है। प्रो. चतुवेर्दी के साथ ही इस रिसर्च में टीबी एंड चेस्ट विभाग के प्रो. जीएन श्रीवास्तव और उनकी टीम भी शामिल है।